Saturday, September 22, 2018

टहनियाँ

धरती तप्त गोले से निकल कर जब
निकली थी अलग होने ,

तब वह निर्वस्त्रा रहती तो ठीक होता ,
पर उस कुमारी ने लड़ाये नैन वरुणसे औऱ
श्रांत होकर उसने हरियाली ओढ़ना चाहा ,

फ़िर जन्मी असंख्य कादंबरीयाँ
कुछ तृण बने तो कुछ वृक्ष घनघोर ।

फिर अनेक वर्षों में कोई एक हमेशा
कदम्ब बनके खड़ा रहता है,
आरम्भ तक जाने के लिये..
जड़ों की खोज में ,

धरती की हर एक कहानियों को समझकर
ये समझाता है सभी को,
के उतनी ही मासूमियत से समझो ये प्रक्रिया ,
जिससे तृण रूप पहली कविता जन्मी थी धरतीसे !

लेकिन कभी हम उसे शिव , कभी कृष्ण
तो कभी येशु और बुध्द बनाकर
लिख देते है धर्मग्रंथ और खो देते है अवसर
वो सारी कविताएँ , कथाएँ ग्रहण करने का

और कदम्ब ने लिखी
कादम्बरी की जड़ो का
विस्मरण करते करते ,
काँट लेते है अपनी अपनी टहनियाँ
फ़िर टहनियाँ लिए फिरते है अलग अलग
अगले कदम्ब की खोज में !

हाँ इसलिए कहता हुँ
धरती निर्वस्त्र कुमारी रहती तो ठीक होता !
विनायक

No comments:

Post a Comment

प्रलयगीत

 दिवस मोगरा होतो  रात्र सायली होते ,  तुझिया अस्तित्वाने  श्लोक-शायरी होते।  मी धुनी पेटवत असता तू यज्ञाचे मंतर गाते , मी अलख निरंजन म्हणतो ...